Monday, 28 October 2024

सुबह कविता

 सुबह 



सूरज की किरणें आती हैं. 
सारी कलियाँ खिल जाती हैं।


 अंधकार सब खो जाता है. 
सब जग सुंदर हो जाता है। 


चिड़ियाँ गाती हैं मिल-जुलकर,
 बहते हैं उनके मीठे स्वर। 


ठंडी-ठंडी हवा सुहानी. 
चलती है जैसे मस्तानी। 


ये प्रात: की सुख बेला है,
 धरती का सुख अलबेला है।


 नई ताज़गी, नई कहानी, 
नया जोश पाते हैं प्राणी।। 


खो देते हैं, आलस सारा, 
 और काम लगता है प्यारा।।


 सुबह भली लगती है उनको 
मेहनत प्यारी लगती जिनको। 


मेहनत सबसे अच्छा गुण है, 
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है। 


अगर सुबह भी अलसा जाए, 
तो क्या जग सुंदर हो पाए? 

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